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मैथिली साहित्यक गौरवमयी इतिहास के पन्ना के बढावैत हम अपन किछु प्रसिद्ध रचना लऽ कऽ प्रस्तुत छी, जेकरा हम अखन धरि विद्यापति समारोह के माध्यम से संबोधित करय छलहुँ। पुनः आयि-काल्हि के इंटरनेट युग के साहित्य प्रेमी ( विशेषतः मैथिल) के मनोरंजनक लेल अपन कविता लऽ के प्रस्तुत छी। आशा अछि जे अहाँ सभ के ई हमर प्रयास नीक लागत।

Thursday, December 28, 2006

हमरा नहि सोहाय यै

ई अंटेटल के टाट, हमरा नहि सोहाय यै,
बीच अंगना दऽ बाट, हमरा नहि सोहाय यै।
मौगी लबड़ी नीको भली,
मरद लबड़ा के बात हमरा नहि सोहाय यै।

केकरो ओल सनक बोल, हमरा नहि सोहाय यै,
घरक फुटल ढोल, हमरा नहि सोहाय यै।
कुमारे रही से बरु नीक,
कनियाँ भकलोल हमरा नहि सोहाय यै।

बिन मेघक मल्हार हमरा नहि सोहाय यै,
छुछक दुलार हमरा नहि सोहाय यै,
भोजन व्यवस्था हो, तँ कोनो बात नहि,
झूठौ के हकार हमरा नहि सोहाय यै।

- (सितम्बर २००४) इंद्र कान्त लाल

2 comments:

गौरव गगन - Gaurav Gagan said...

mast ya mama jee

Unknown said...

वाह !!! बहुत मजेदार मजेदार पांति लिखने छी अन्हा !!! पैढ़ क मजा आइब गेल !!!