हम खाँचर देखलहुँ, खचाँठी देखलहुँ
उकट्ठी-उकपाती देखलहुँ,
मुदा भोरे उठि कऽ बाँस पर चढ़ब
एहन जनाना कतहु ने देखलहुँ।
मारि पिटि कऽ माउग मेहरा के
छोड़बैत देखलहुँ छक्का,
देखतहि हुनकर रौद्र रूप
हम होय छी हक्का-बक्का,
भरल पंच में बाँसक फट्ठा
भैंसुरक कपार पर तोरैत देखलहुँ...
हम एहन जनाना कतहुँ नहि देखलहुँ।
एहि आगि लगौन के सूप डेंगौन के
कनिञों नहि छन्हि धरी-धोखा,
बाजत एहन आगि लगा कऽ
सगर देह में उठत फोंका,
दोसरक घर में आगि लेस कऽ
अपन आलू पकबति देखलहुँ...
हम एहन जनाना कतहुँ नहि देखलहुँ।
फुजल उक सन लहलहाति ई
एकरा बरजब संकट भारी,
ई देवी छथि लंका उजारनी
करतै के मारा-मारी,
फाँड़ बान्हि के सरहना पर
कसि कऽ ताल ठोकैत देखलहुँ...
हम एहन जनाना कतहुँ नहि देखलहुँ।
- इंद्र कान्त लाल (दिसम्बर २०००)
हास परिहास में अहाँक स्वागत अछि
मैथिली साहित्यक गौरवमयी इतिहास के पन्ना के बढावैत हम अपन किछु प्रसिद्ध रचना लऽ कऽ प्रस्तुत छी, जेकरा हम अखन धरि विद्यापति समारोह के माध्यम से संबोधित करय छलहुँ। पुनः आयि-काल्हि के इंटरनेट युग के साहित्य प्रेमी ( विशेषतः मैथिल) के मनोरंजनक लेल अपन कविता लऽ के प्रस्तुत छी। आशा अछि जे अहाँ सभ के ई हमर प्रयास नीक लागत।
Tuesday, March 27, 2007
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6 comments:
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Thanking you,
Abhishek Mishra
कतय नुकायल छ्लहुन अपने? बहुत नीक रचना! एहन जनाना के बारे मे सोचिये कय हमरा डर लगैत अछि!
bandhiya ya mama jee
nikk lagal paidh k..
bahut nik lagal ahaka e prastuti aha sab apan lakha sa ahi ekra susobhit karait rahi yo
bahut garam aichh.... munh paik gel... ati uttam...
hamra lagait aichh je apnek pala ehan janana saw pari chukal aichh . khair je bhi muda bahut nik lagal e prastuti
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