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मैथिली साहित्यक गौरवमयी इतिहास के पन्ना के बढावैत हम अपन किछु प्रसिद्ध रचना लऽ कऽ प्रस्तुत छी, जेकरा हम अखन धरि विद्यापति समारोह के माध्यम से संबोधित करय छलहुँ। पुनः आयि-काल्हि के इंटरनेट युग के साहित्य प्रेमी ( विशेषतः मैथिल) के मनोरंजनक लेल अपन कविता लऽ के प्रस्तुत छी। आशा अछि जे अहाँ सभ के ई हमर प्रयास नीक लागत।

Friday, December 29, 2006

गरम छै

एना किए! आय सभ गरम छै।

वोटक लेल आब नोट गरम छै,
नेता लोकनिक कोट गरम छै,
मतदाता के चोट गरम छै,
जेठ महिनाक दुपहरिया में,
सीधे कपार पर रौद गरम छै...
एना किए! आय सभ गरम छै।

लोकसभाक अध्यक्ष गरम छै,
हुज्जत लेल विपक्ष गरम छै,
सत्ताधारी प्रत्यक्ष गरम छै,
देखु जतरा केहन बनल ई,
भोरका आहार ई चाय गरम छै...
एना किए! आय सभ गरम छै।

घुसखोरिक व्यापार गरम छै,
लुटि मारिक प्रचार गरम छै,
अखबारक समाचार गरम छै,
नन्हिटा जे डिबिया देखै छी,
तेकरो रासि बहुत गरम छै...
एना किए! आय सभ गरम छै।

जातिवादक समाज गरम छै,
जनता के आवाज गरम छै,
रोजगारक ईनक्लाब गरम छै,
खिड़की हुलकि जे बगल में देखलहुँ,
पापा पर मम्मी सेहो गरम छै...
एना किए! आय सभ गरम छै।

आकाली के हवा गरम छै,
भुखलाहा के तावा गरम छै,
कुम्हारक आवा सेहो गरम छै,
पानि में भिंजी के बौआ आयल,
देखलहुँ, ओकरो देह गरम छै...
एना किए! आय सभ गरम छै।

भाव बढल बाजार गरम छै,
किराया लेल सवार गरम छै,
जनता पर सरकार गरम छै,
बजट जखन सरकारक देखलहुँ,
कमेनिहारक कपार गरम छै...
एना किए! आय सभ गरम छै।

करमचारी के माँग गरम छै,
मंत्रीजी के शान गरम छै,
पक्ष-विपक्ष बेजान गरम छै,
की गरमी कहु हठबाजी के,
हड़तालक मशाल गरम छै...
एना किए! आय सभ गरम छै।

- (१९८५) इंद्र कान्त लाल

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