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मैथिली साहित्यक गौरवमयी इतिहास के पन्ना के बढावैत हम अपन किछु प्रसिद्ध रचना लऽ कऽ प्रस्तुत छी, जेकरा हम अखन धरि विद्यापति समारोह के माध्यम से संबोधित करय छलहुँ। पुनः आयि-काल्हि के इंटरनेट युग के साहित्य प्रेमी ( विशेषतः मैथिल) के मनोरंजनक लेल अपन कविता लऽ के प्रस्तुत छी। आशा अछि जे अहाँ सभ के ई हमर प्रयास नीक लागत।

Friday, December 29, 2006

हम की छी

हम खाँचर नहि खचाँठी छी,
उकठ्ठी नहि उकपाती छी,
हेहर नहि हरहट्टी छी,
गामक हम चौबट्टी छी।

भूट नहि हम भुट्टा छी,
बीचला घरक खुट्टा छी,
दुब्बर नहि हम सुट्टा छी,
सबसे पैघ सैन्हकहा छी,
हट्ठा छी, कट्ठा छी,
सुप महक हम भट्टा छी।

ढोल नहि हम ढोलक छी,
नेता सौंसे टोलक छी,
भाँग नहि हम मोदक छी,
बिजली बड़का पोलक छी,
उद्घोषक छी संसोधक छी,
ठोंटी कचका ओलक छी।

गप्पी नहि गप्पकर छी,
जनमहि सँ बतक्कर छी,
नेता नहि मिनिस्टर छी,
सबसे पैघ पियक्कर छी,
लुक्कर छी, भुक्कड़ छी,
हम गामक घनचक्कर छी।

पंडित नहि पाखण्डी छी,
नेता लोकनिक बण्डी छी,
अर्जुन नहि शिखण्डी छी,
रस्ता नहि पगडण्डी छी,
अंडी छी, बघंडी छी,
हम बड़का धुरफंदी छी।

बिहारि नहि हम आँधी छी,
सोनिया नहि हम गाँधी छी,
टलहा नहि हम चाँदी छी,
जे पहिने छलहुँ से आबो छी,
मुदा बरका अवसरबादी छी।

1 comment:

Sri Sri Batuknathan said...

baans nahi aha kopar chhi.
aata nahi aha chokar chhi.
patni tadan sa kavi banal
sai nahi aha nokar chhi.