दैत करोट लागि गेल खबीस,
नोचति देह बाजि उठलहुँ ईस्स...
कटलक उड़ीस ! कटलक उड़ीस !!
बड दिन सँ तों तंग केलैं,
सुतल में निन्न भंग केलैं,
देहक सोनित चुसि लेलैं।
तैं चढल अछि एतेक खीस...
कटलक उड़ीस ! कटलक उड़ीस !!
नहुँ-नहुँ तों खटिया में आबिकऽ,
सुतली राति में डिबिया जगाकऽ,
धिया-पुता संग हमरा जगाकऽ,
अपने गेलैं तकिया में घुसि...
कटलक उड़ीस ! कटलक उड़ीस !!
हमरा से तोरा नहि पड़लौ पाला,
कहुना छी हम जातिक लाला।
रातिये भरि तों ठहरि जो,
अपन परिवार लऽ सम्हरि जो,
होयत भोर ढारबौ टिक ट्वेन्टीक (Tic 20) बीष...
कटलक उड़ीस ! कटलक उड़ीस !!
हास परिहास में अहाँक स्वागत अछि
मैथिली साहित्यक गौरवमयी इतिहास के पन्ना के बढावैत हम अपन किछु प्रसिद्ध रचना लऽ कऽ प्रस्तुत छी, जेकरा हम अखन धरि विद्यापति समारोह के माध्यम से संबोधित करय छलहुँ। पुनः आयि-काल्हि के इंटरनेट युग के साहित्य प्रेमी ( विशेषतः मैथिल) के मनोरंजनक लेल अपन कविता लऽ के प्रस्तुत छी। आशा अछि जे अहाँ सभ के ई हमर प्रयास नीक लागत।
Friday, December 29, 2006
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
1 comment:
bahut neek, humre gaonk neta sanak
Post a Comment