हास परिहास में अहाँक स्वागत अछि

मैथिली साहित्यक गौरवमयी इतिहास के पन्ना के बढावैत हम अपन किछु प्रसिद्ध रचना लऽ कऽ प्रस्तुत छी, जेकरा हम अखन धरि विद्यापति समारोह के माध्यम से संबोधित करय छलहुँ। पुनः आयि-काल्हि के इंटरनेट युग के साहित्य प्रेमी ( विशेषतः मैथिल) के मनोरंजनक लेल अपन कविता लऽ के प्रस्तुत छी। आशा अछि जे अहाँ सभ के ई हमर प्रयास नीक लागत।

Friday, December 29, 2006

कुमारे रहबै

खोलह आँखि हे औढर-ढर तौं,
हम की आब कुमारै रहबै।

बौक बताह सब पार उतरि गेल,
नेंगरो मारै मोछ पर तान।
लगनक जोरगर कहु लुखबा केँ,
छोरेलक उहो गदहा छान।
नेना-भुटका राज भोगय यै,
हम सभ दिन झामें बुरबै...
खोलह आँखि हे औढर-ढर तौं,
हम की आब कुमारै रहबै।

सीनीयर के की बात पुछय छी,
जुनियर आब कहाबै पापा,
हम अखनि धरि भटकि रहल छी,
चढत मौर नहि हमरा माथा।
हमहुँ अनसन ठानि दैत छी,
माँग कोना मंजूर ने करबै...
खोलह आँखि हे औढर-ढर तौं,
हम की आब कुमारै रहबै।

हम तँ छाती पाथर केलहुँ,
हमरा विधि नहि लिखलनि ई।
बिनु रोजगारक विवाह करब नहि,
निश्चय हमर प्रतिज्ञा छी,
हमरा नहि अछि अपन चिन्ता,
दोसरक भार हम कोना उठैबे...
खोलह आँखि हे औढर-ढर तौं,
हम की आब कुमारै रहबै।

उमर नौकरीक बिती रहल अछि,
घर पर नहि अछि खेत पथारी।
मुँह बौने हम ठाढ देखै छी,
विकट समस्या बेरोजगारी।
घटक महोदय जे फेर में परलाह,
हुनको टाँग तारबे करबै...
खोलह आँखि हे औढर-ढर तौं,
हम की आब कुमारै रहबै।

No comments: