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मैथिली साहित्यक गौरवमयी इतिहास के पन्ना के बढावैत हम अपन किछु प्रसिद्ध रचना लऽ कऽ प्रस्तुत छी, जेकरा हम अखन धरि विद्यापति समारोह के माध्यम से संबोधित करय छलहुँ। पुनः आयि-काल्हि के इंटरनेट युग के साहित्य प्रेमी ( विशेषतः मैथिल) के मनोरंजनक लेल अपन कविता लऽ के प्रस्तुत छी। आशा अछि जे अहाँ सभ के ई हमर प्रयास नीक लागत।

Friday, December 29, 2006

मोटर चलय बिन पहिया के

जो रे जमाना तहिया के

मोटर चलय बिन पहिया के...
हाकिम सब पर हुकूम चलै छल,
के पुछय सिपहिया के,
जो रे जमाना तहिया के।

डाक चलै छल चहुँ दिस हमरे,
सिकियो धरि नहि हिल सकै यै,
बिना चढ़ाबा हमरा चढ़ौने
मूसो नहि बिल खूनि सकै यै,
फिल्मी तारिका घेर नचाबी
हम वंशज किशुन कन्हैया के,
जो रे जमाना तहिया के।

छल सऽ बल सऽ वा कौशल सऽ
सत्ता के हथियौने छी,
बड़का-बड़का हस्ती के हम
अंगुरी पर नचौने छी,
जेलो में हमर सेज सजै छल
सबटा खले बतहिया के,
जो रे जमाना तहिया के।

बिरादरी में एहि बेर हमरा
सभ कियो धऽ के पछाड़ि देलक यै,
हमरे पोसल पट्ठा सभ
हमरे आबि के बजाड़ि देलक यै,
तेलो सभटा चुबि गेल छै
लालटेन फुटलहिया के,
जो रे जमाना तहिया के।

-इंद्र कान्त लाल (नवम्बर १९९९)

1 comment:

ज्योति प्रकाश लाल said...

अति उत्तम ईन्द्रकान्तजी,कविता लिखवा मे अहाँ कड मासटरि अछि. हमर शुभकामना!!!.

"जय मिथिला"
ज्योति प्रकाश लाल "नारायनजी"